लग्न देखकर दूसरे और ग्यारहवें भाव के स्वामी की स्थिति और दशा से धन योग का विश्लेषण करो।"
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🔑 🔹 लग्न देखो, फिर धन (2nd) और लाभ (11th) भाव के स्वामी कौन हैं, यह पहचानो — वही सबसे बड़े धनदायक ग्रह होते हैं।
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🔹 ग्रह अगर अपने घर (स्वग्रही), मूल त्रिकोण या उच्च राशि में बैठा हो, तो धन लाभ के जबरदस्त योग बनते हैं।
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🔹 यदि धन भाव का स्वामी छठे, आठवें, या बारहवें भाव में हो, तो कर्ज, हानि और धन की रुकावट संभव है।
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🔹 ग्रह भले ही अपने घर में हो, लेकिन यदि सूर्य के बहुत पास आकर 'अस्त' हो जाए, तो उसका फल कमजोर हो जाता है।
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🔹 बुध ग्रह को अस्त होने से ज्यादा नुकसान नहीं होता, क्योंकि यह सदैव सूर्य के पास रहता है।
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🔹 राहु-केतु केंद्र (1,4,7,10) या त्रिकोण (5,9) में हो और अगर पाप ग्रहों की दृष्टि या युति ना हो, तो ये गुरु तुल्य फल देते हैं — मतलब बहुत अच्छा धन लाभ।
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🔹 शुक्र, गुरु, शनि, मंगल आदि धन के स्वामी यदि अपने उच्च, मूल त्रिकोण या स्वगृह में हो, और महादशा/अंतर्दशा में आएं, तो भारी धन लाभ निश्चित है।
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🔹 कुंडली में 11वें घर का स्वामी और उसका placement विशेष ध्यान से देखें, क्योंकि वही लाभ और recurring income देता है।
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🔹 वक्ता का अनुभव यह कहता है कि:
“धन का योग तब फल देता है जब उसका स्वामी या कारक ग्रह महादशा या अंतर्दशा में हो।”
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🔹 शर्तें: ग्रह का नीच होना, अस्त होना, या शनि-मंगल की दृष्टि पड़ना — ये धन में बाधा बनाते हैं।
📌 निष्कर्ष में मुख्य लाइन:
"लग्न देखकर दूसरे और ग्यारहवें भाव के स्वामी की स्थिति और दशा से धन योग का विश्लेषण करो।"
जानिए कैसे आपकी कुंडली का लग्न, धन भाव (2nd house) और लाभ स्थान (11th house) में स्थित ग्रह धन प्राप्ति में भूमिका निभाते हैं। उच्च, स्वग्रही या मूल त्रिकोण में ग्रह कैसे धन योग बनाते हैं, यह पोस्ट विस्तार से बताएगी। धन लाभ के लिए ग्रहों की सही स्थिति और दशा/अंतर्दशा का रहस्य इसी पोस्ट में।
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